तुकाराम जी के मुख्यतः चौदह (१४) धृपदे थे । कई स्थानों पर
महिपतीबाबा ने इसका जिक्र किया है । ये तुकाराम जी के कीर्तन में
धृपद गाते थे (टेक देते थे) ।
१) महादजी पंत कुलकर्णी - देहू गाँव के पटवारी (कुलकर्णी) थे ।
प्रस्तुत उल्लेख बहिणाबाई की गाथाओं में भी प्राप्त होता है । वे
मंदिर के निर्माण की देखभाल भी करते थे ।
२) तलेगाव के गंगाधर बाबा मवाल - अभंग लेखक थे । तुकाराम जी की
सेवा में उनके प्रस्तुत होने के उल्लेखों के लिखित प्रमाण मिलते
हैं ।
३) चाकण के संताजी तेली जगनाडे - तुकाराम जी के अभंगलेखक थे ।
४) तुकाराम जी के बंधु - कान्होबा ।
५) येलवाडी के मालजी गाडे - जो तुकाराम जी के जामाता थे ।
६) लोहगांव के कोंडोपंत लोहकरे ।
७) सदुंबरे के गवार शेट वाणी ।
८) चिखली के मल्हारपंत कुलकर्णी ।
९) आबाजीपंत लोहगावकर ।
१०) रामेश्वर भट्ट बहुळकर ।
११) लोहगाव के कोंडेपाटील ।
१२) लोहगाव के नावजी माळी ।
१३) लोहगांव के शिवबा कासार ।
१४) सोनबा ठाकूर - जो कीर्तन के समय मृदंग (पखवाज) बजाते थे ।
तुकाराम जी ने उनकी शिष्या बहिणाबाई को सपने में उपदेश दिया । वे
उनके दर्शन के लिए देहू आईं । वहीं उन्हें काव्यत्व की स्फूर्ति
मिली । बहिणाबाई ने उनके कीर्तन सुने । मंबाजी ने उन्हें काफी
तकलीफें दीं । तुकाराम जी के पश्चात् बहिणाबाई का ही महत्त्वपूर्ण
स्थान था । उनकी अभंगगाथा एक बार पढनी ही चाहिए ।
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