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१०. तुकारामजी के झाँझिये, अनुयायी तथा शिष्य

 
 
 

        तुकाराम जी के मुख्यतः चौदह (१४) धृपदे थे । कई स्थानों पर महिपतीबाबा ने इसका जिक्र किया है । ये तुकाराम जी के कीर्तन में धृपद गाते थे (टेक देते थे) ।
१) महादजी पंत कुलकर्णी - देहू गाँव के पटवारी (कुलकर्णी) थे । प्रस्तुत उल्लेख बहिणाबाई की गाथाओं में भी प्राप्‍त होता है । वे मंदिर के निर्माण की देखभाल भी करते थे ।
२) तलेगाव के गंगाधर बाबा मवाल - अभंग लेखक थे । तुकाराम जी की सेवा में उनके प्रस्तुत होने के उल्लेखों के लिखित प्रमाण मिलते हैं ।
३) चाकण के संताजी तेली जगनाडे - तुकाराम जी के अभंगलेखक थे ।
४) तुकाराम जी के बंधु - कान्होबा ।
५) येलवाडी के मालजी गाडे - जो तुकाराम जी के जामाता थे ।
६) लोहगांव के कोंडोपंत लोहकरे ।
७) सदुंबरे के गवार शेट वाणी ।
८) चिखली के मल्हारपंत कुलकर्णी ।
९) आबाजीपंत लोहगावकर ।
१०) रामेश्वर भट्ट बहुळकर ।
११) लोहगाव के कोंडेपाटील ।
१२) लोहगाव के नावजी माळी ।
१३) लोहगांव के शिवबा कासार ।
१४) सोनबा ठाकूर - जो कीर्तन के समय मृदंग (पखवाज) बजाते थे ।

    तुकाराम जी ने उनकी शिष्या बहिणाबाई को सपने में उपदेश दिया । वे उनके दर्शन के लिए देहू आईं । वहीं उन्हें काव्यत्व की स्फूर्ति मिली । बहिणाबाई ने उनके कीर्तन सुने । मंबाजी ने उन्हें काफी तकलीफें दीं । तुकाराम जी के पश्चात् बहिणाबाई का ही महत्त्वपूर्ण स्थान था । उनकी अभंगगाथा एक बार पढनी ही चाहिए ।

 
 

११. प्रयाण