- मूल मराठी : ह.भ.प. श्रीधर महाराज देहूकर
- अनुवादक : डॉ. सत्यनारायण स्वामी,
बीकानेर, राजस्थान. |
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ये तु धर्म्यामृतमिदम् गीता १२.२०
ते हे गोष्टी रम्य । अमृतधाराधर्म्य ।
करिती प्रतिती गम्य । ऐकोनी जे ॥ ज्ञानदेवी १२.२३०
ईश्वर रै चरित्र नै परमामृत कैयो जावै है और भक्त रै चरित्र नै धर्म्यामृत कैयीजै । ईश्वर रा चरित्र संतां गाया, सुणाया पण संतां रा चरित्र आपां सुणावां - ओ दोरो काम है । कारण संत जिसा हुवै है, बिसा दीखै कोनी और जिसा दीखै है बिसा हुवै कोनी । इण रै अलावा आपां री जिकी शब्दसृष्टि है, बा ई सीमित है ।
आमुते करावया गोठी । ते झालीच नाही वाग्सृष्टि ।
आम्हालागी दिठी । तें दिठीच नोहे ॥ ( अमृतानुभव )
आपां जे उणां नै पूछां - आप कुण हो ? कठै रा हो ? कठै सूं आया ? कठै जावोला ? आप रो नांव कांई ? रूप कांई ? तो बै कैवेला - कीं कोनी ।
काहिंच मी नव्हे कोणिये गावीचा । एकट ठायीचा ठायीं एक ॥१॥
तुका म्हणे नावरूप नाहीं आम्हां । वेगळा ह्या कर्मा अकर्मासी ॥५॥
इण हालात में संतश्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज रै महान चरित्र रो थोड़ो-सोक भाग देवण री म्हे कोसीस कर रैया हां ।
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धन्य देहू गाव पुण्य भूमि ठाव । तेथे नांदे देव पांडुरंग ॥१॥
धन्य क्षेत्रवासी लोक दैवाचे । उच्चारिती वाचे नाम घोष ॥धृ॥
कर कटी उभा विश्वाचा जनिता । वामांगी ते माता रखुमादेवी॥२॥
गरूड पारीं उभा जोडूनिया कर । अश्वत्थ समोर उत्तरामुख ॥३॥
दक्षिणे शंकर लिंग हरेश्वर । शोभे गंगातीर इंद्रायणी ॥४॥
लक्ष्मीनारायण बल्लाळाचें वन । तेथें अधिष्ठान सिद्धेश्वर ॥५॥
विघ्नराज द्वारीं बहिरव बाहेरी । हनुमंत शेजारी सहित दोघे ॥६॥
तेथे दास तुका करितो कीर्तन । ह्रुदयीं चरण विठोबाचें॥७॥
श्री तुकाराम महाराज री जलमभोम - जन्मभूमि, कर्मभूमि बण्यो थकों देहू गांव पुण्यभूमि है । देहू गांव नै धन्यता अर पुण्यता मिली बा बठै बिराज्योड़ा पांडुरंग देव ( री प्रतिमा ) रै कारण । ओ जागतो थान है ।
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इंद्रायणी नदी रै
फूठरै किनारै माथै पांडुरंग (कृष्ण भगवान का बाल अवतार)
भगवान रो मिंदर है । कमर माथै हाथ मेल्योड़ा संसार रा जनक
ऊभा है । डावै |
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भाग में माता
रखुमाई है । सामनै पींपळ रो पेड़ है । दूजै पासै
गरुड़ हाथ जोड़्यां ऊभो है । दरवाजै माथै बिघनराज
गणेश है । बारै भैरव अर हनुमानजी है । दिखाणादै
पासै हरेश्वर रो मिंदर है । कनैई बल्लाळ रो बन |
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है । उण में सिध्देश्वर री बस्ती है ।
उण क्षेत्र रा रैवासी धन्य है, बै भाग्यशाळी है, जबान (
बाणी ) सूं भगवान रै नांव री जय-जयकार करै है । श्री
तुकाराम महाराज रै उण देहूगांव रो ओ वर्णन है । |
श्री तुकाराम महाराज सूं अंदाजै दो सौ बरस पैलां श्री तुकाराम महाराज रा विश्वंभरबाबा देहू गांव में रैवता हा । इण घराणै रा कुळदेवता विठोबा हा । घराणै में आषाढी कार्तिकी री बारी (तीर्थयात्रा) विश्वंभरबाबा रै बापदादां रै जमानै सूं चालती आयी ही । पंढरी री बारी ( हरेक, खासकर असाढ अर काती री, चानणी इग्यारस तै पंढरपूर जावणो ) बाप-दादां मुजब नेम सूं चालू राखण में बाबा री माताजी अर विश्वंभरबाबा री इण ’निकट सेवा’ सूं भगवान पंढरपूर सूं देहू तांई दौड़र आया जिया कै पुंडलीकराय री निकट सेवा सूं देव ( भगवान) बैकुंठ सूं पंढरपूर तांई दौड़र आया हां ।
पुंडलिकांचे निकट सेवें । कैसे धांवे बराडी ॥१॥
मूळ पुरुष विश्वंभर । विठ्ठलाचा भक्त थोर ॥ १ ॥
त्याचे भक्तीने पंढरी । सांडूनी आले देहू हरि ॥२॥
असाढ सुदि १० (दशमी) रै दिन विश्वंभरबाबा नै भगवान सपनै में दीख्या और हूं थारै गांव आयग्यो हूं’ इतो कैयनै भगवान आंवां रै बन में गया परा । दिनूगै
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विश्वंभरबाबा
गांवाआळां रै सागै आंबा रै बन में गया । बठै उणां
नै श्री विट्ठळ-रखुमाई री स्वयंभू मूरत्यां मिली ।
मूरत्यां री थापना बाबा आपरी बाड़ी रै मिंदर में
करी । पंचकोशी रा लोग ई दरसण सारू आवण लागग्या ।
भगवान रो सालोसाल उछब हुवण लागग्यो । उछब रै खरचै
सारू खेत इनाम में मिल्या । सुदि इग्यारस रै दिन
मेळो भरीजन लागग्यो ।
विश्वंभरबाबा रै देवलोक हुयां पछै उणांरा बेटा हरि |
श्री
विट्ठळ-रखुमाई |
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अर मुकुंद भगवान री सेवा छोडनै मूळ क्षत्रिय-वृत्ति मुड़ग्या । परवाराआळां नै लेयर राजा रै आसरै में गया परा । बठै उणां नै सेना में अधिकारियां री जाग्यां मिलगि । उणां रो ओ काम उणां री माताजी आमाबाई नै जच्यो कोनी । भगवान नै ई दाय को आयो नी । भगवान आमाबाई नै सपनै में आयर कैयो कै थांरै वासतै हूं पंढरपूर छोडनै देहू आयो और थे ई मनै छोडर अठै राज रै सरणै आयग्या, ओ चोखो कोनी । थे देहू जावो । आमाबाई बेटां नै सपनै री बात बतायी और देहू पाछो जावण सारू हर तरै सूं समझायो । बेटां उण कानी जाबक ई ध्यान को दियो नी । पछै राज्य माथै तुरत ई हमला हुया । दोनूं भाई जुध रै मैदान में दुसमणां सूं लड़ता-लड़ता धराशायी हुयग्या । मुकुंदरी पत्नी सती हुयगी । हरि री पत्नी दो-जीवां ही । उणनै लेयनै आमाबाई देहू आया । बीनणी नै सवाढ सारू पीहर भेजी और खुद भगवान री सेवा करण लागग्या । हरि री पत्नी रै छोरो हुयो जिण रो नांव विट्ठळ राख्यो । विट्ठळ रो पुत्र पदाजी, पदाजी रो शंकर, शंकर रो पुत्र कान्होबा और कान्होबा रा बोल्होबा । बोल्होबा रै पुत्र तीन । बडोड़ा सावजी, बिचला तुकाराम अर छोटकिया कान्होबाराय ।
श्री तुकाराम महाराज रो जिण कुळ में जलम हुयो बो कुळ पवित्र हो ।
पवित्र तें कूळ पावन तो देश । जेथें हरिचें दास घेती जन्म ॥१॥
बो कुळ पवित्र रो हो । पुरखां रणखेत में दुसमणां सूं लड़ता-लड़ता प्राण तज्या हा । घराणो सुसंस्कृत हो । धार्मिक हो । घर में पीढ्यां-न-पीढ्यां सूं श्री विट्ठळ री उपासना चालू ही । पंढरी री बारी ही । महाजनी रै पेशै री जाग्यां ही । खेती-बाड़ी ही, साहूकारी ( ब्याज-बटो ) रो काम हो, ब्योपार-धंधो हो । दो हवेल्यां ही । एक रैवण री अर दूजी हाट-बजार में महाजनी सारू । गांव में आछी मान-प्रतिष्ठा ही । पंचकोशी में ईजत-आबरू ही । खेती करता हा इण कारण उणां नै लोग कुणबी ( एक खेती सूं गुजारो करणाआळी अब्राह्मण जाति ) कैया करता, ब्योपार-धंधो करता हा इण कारण बाणिया बजता । और श्री तुकाराम महाराज इण सगळा कामां सूं ई मुख मोड़ राख्यो हो जिणसूं उणां नै गुसांई बाबा कैवण लागग्या ।
गुसांई ओ कारण इण कुळ रो उपनांव को हो नी । उपनांव मोरे - और गुसांई आ पदवी ( इंद्रियांचे धनी आम्ही झालो गोसावी ) । गीता रै काळ (बगत) में वैश्य री गिणती शूद्रां में हुवण लागगी ही ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥ गीता ९/३२
ज्ञानदेव महाराज रै काळ में क्षत्रिय री गिणती भी शूद्रां में हुवण लागगी ही ।
तैसे क्षत्री वैश्य स्त्रिया । कां शूद्र अंत्याजादि इया ॥ ज्ञानदेवी ९/४६०
दो ई वर्ण रैयग्या हा । ब्राह्मण अर शूद्र । इण कारण महाराज नै शूद्र कैवण लागग्या हा ।
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