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चरित्र

 
 

 महात्मा गांधी

 
 

प्रतिक्रिया

 
 

मुखपृष्ट

 
   
   
   
   
   
   
   
   
   
 
   

२. राजकीय, धार्मिक अर सामाजिक स्थिति

 

    दक्षिण में उण बेळा मुसळमानी सत्ता रो जोर हो । गोवा में पुर्तगाळी हा । बीजापुर री आदिलशाही, अहमदनगर री निजामशाही, गोळकुंडा री कुतुबशाही - ऐ राज करणआळी तीन मुसळमानी सत्तावां एक दूसरी सूं लड़त्यां ही, गांव रा गांव तैस-नैस हुय जावता, लूंटीज जावता हा । राजा लोग भोग-बिलास में जुट्या रैवता । बै प्रजा माथै जुलम करता । ’ब्राह्मणा आप रा आचार-बिचार छोड दिया हा । क्षत्रिय लोग वैश्यां नै सतावता हा, जोरामरदी सूं धरम बदळीज रैया हा ।’ महाराज कैयो -

सांडिले आचार । द्विज चाहाड जाले चोर ॥२॥

राजा प्रजा पीडी । क्षेत्री दुश्चितासी तोडी ॥७॥

वैश्यशूद्रादिक । हे तों सहज नीच लोक ॥८॥

    वैश्य अर शूद्रां रै बिसै में तो बोलणो ई कोनी । धरम रो लोप हुयग्यो हो । अधर्म बघ रैयो हो ।

ऐसे अधर्माचें बळ । लोक झकविले सकळ ।

    लोग अधर्म नै ई धर्म कैवण लागग्या । संतां रो मान-संमान रैयो ई कोनी ।

संतां नाही मान । देव मानीं मुसलमान ॥१॥

समाज भांत-भांत रै देवी-देवतावां रो पल्लो झालनै तितर-बितर हुयग्यो हो । धर्म में आकर्षण ई को रैयो हो नी । अज्ञान रो अंधकार फैलग्यो हो । लोग प्रकाश देवण आळै सूरज रै ऊगण री बाट जोवै हा । इसा हालात में देहू गांव में चित्‌ ( चेतन ) सूरज रो उदै हुयो ।

संत ग्रहमेळि। जगत्‌ अंध्यागिळी ।

पैल उदयाचळी । भानु तुका ॥३॥

- रामेश्वर भट्ट अभंग

       महान भगवत्‌-भगत बोल्होबा अर माता कनकाई रै उदर सूं शक सं. १५३० ( ई.स. १६०९) में श्री तुकाराम महाराज रो जलम हुयो । घर में आछी धन-संपत्ति हुवण रै कारण बाळपण भारी लाड-कोड अर खेलकूद में बीत्यो । श्रीगणेश री पढाई पंतोजी ( गुरूजी ) करायी । पंतोजी हाथ में पाटी लेयर टाबर रा हाथ झालनै उण नै सिखावता ।

अर्भकाचे साठी । पंते हाते धरिली पाटी ॥ १ ॥

    टाबर हाथ में खड़िया ( माटी ) लेयर पाटी माथै मूळ आखर मांडतो ।

ओनाम्याच्या काळें । खडें मांडियेलें बाळें ॥१॥

     लोक-व्यवहार अर परमार्थ री पढाई महाराज पिताजी बोल्होबा कनै करी । बडै भाई सावजी ब्यापार-धंधै करनी ध्यान देवणो नकार देवण रै कारण पिताजी श्रीतुकारम महाराज नै ब्यापार-धंधो अर साहूकारी रो काम देखण सारू कैयो । हाट-बजार रै महाजनी आळै मकान में पिताजी रै हाथ हेठै काम करतां-करतां धंधै रा पाठ सीखता रैया । ऊमर रो तेरवैं बरस में महाराज रै खांधै माथै गिरस्ती रो भार आय पड़्यो । महाराज बेगा ई स्वतंत्र रूप सूं काम-धंधो ( ब्यापार ) देखण लागग्या । साहूकारी में, ब्यापार-धंधै में महाराज री आछी पैठ जमगी । लोगां कनै सूं शाबासी मिलण लागगी । सगळा जणा तारीफ करण लागग्या । तीनूं भाइयां रा ब्यांव हुयग्या । महाराज री पैलड़ी पत्‍नी दमै रै कारण सदा ई बैमार रैवण रै कारण महाराज रो दूसरा ब्यांव पूना रै नामी साहूकार अप्पाजी गुळवे री कन्या सौ. जिजाबाई उर्फ आवली रै सागै हुयो । एक धनवान घराणै रो दूसरे धनवान घराणै सूं संबंध हो । ओ लौकिक धन-ऐश्वर्य परा-कोटी तांई पूगग्यो हो । घर में धन-धान्य बेशुमार हो । प्रेमी माता-पिता, सज्जन बंधु, निरोगो शरीर - किणी ई बात रो कोई टोटो को हो नी ।

माता पिता बंधु सज्जन । घरीं उदंड धन धान्य ।

        शरिरी आरोग्य लोकांत मान । एकही उणे असेना ॥ १ ॥

( महिपतिबाबा चरित्र )

ऐ सुख, शांति अर ऐश्वर्य रा दिन कद बीतग्या, कियां बीतग्या ओ थोड़ो-घणो ई समझ में को आयो नी । इण रै पछै ’सुख रै बाद आवै दुख’ इण भविष्य री चाल सरू हुयी |

 

३. माता-पिता रो बियोग