दक्षिण में उण
बेळा मुसळमानी सत्ता रो जोर हो । गोवा में पुर्तगाळी हा । बीजापुर री आदिलशाही,
अहमदनगर री निजामशाही, गोळकुंडा री कुतुबशाही - ऐ राज करणआळी तीन मुसळमानी सत्तावां
एक दूसरी सूं लड़त्यां ही, गांव रा गांव तैस-नैस हुय जावता, लूंटीज जावता हा । राजा
लोग भोग-बिलास में जुट्या रैवता । बै प्रजा माथै जुलम करता । ’ब्राह्मणा आप रा
आचार-बिचार छोड दिया हा । क्षत्रिय लोग वैश्यां नै सतावता हा, जोरामरदी सूं धरम
बदळीज रैया हा ।’ महाराज कैयो -
सांडिले आचार । द्विज चाहाड जाले
चोर ॥२॥
राजा प्रजा पीडी । क्षेत्री
दुश्चितासी तोडी ॥७॥
वैश्यशूद्रादिक । हे तों सहज नीच
लोक ॥८॥
वैश्य अर शूद्रां
रै बिसै में तो बोलणो ई कोनी । धरम रो लोप हुयग्यो हो । अधर्म बघ रैयो हो ।
ऐसे अधर्माचें बळ । लोक झकविले सकळ
।
लोग अधर्म नै ई
धर्म कैवण लागग्या । संतां रो मान-संमान रैयो ई कोनी ।
संतां नाही मान । देव मानीं मुसलमान
॥१॥
समाज भांत-भांत रै देवी-देवतावां रो
पल्लो झालनै तितर-बितर हुयग्यो हो । धर्म में आकर्षण ई को रैयो हो नी । अज्ञान रो
अंधकार फैलग्यो हो । लोग प्रकाश देवण आळै सूरज रै ऊगण री बाट जोवै हा । इसा हालात
में देहू गांव में चित् ( चेतन ) सूरज रो उदै हुयो ।
संत ग्रहमेळि। जगत् अंध्यागिळी ।
पैल उदयाचळी । भानु तुका ॥३॥
- रामेश्वर भट्ट अभंग
महान भगवत्-भगत बोल्होबा अर माता कनकाई रै उदर सूं शक सं. १५३० ( ई.स. १६०९) में
श्री तुकाराम महाराज रो जलम हुयो । घर में आछी धन-संपत्ति हुवण रै कारण बाळपण भारी
लाड-कोड अर खेलकूद में बीत्यो । श्रीगणेश री पढाई पंतोजी ( गुरूजी ) करायी । पंतोजी
हाथ में पाटी लेयर टाबर रा हाथ झालनै उण नै सिखावता ।
अर्भकाचे साठी । पंते हाते धरिली
पाटी ॥ १ ॥
टाबर हाथ में
खड़िया ( माटी ) लेयर पाटी माथै मूळ आखर मांडतो ।
ओनाम्याच्या काळें । खडें मांडियेलें
बाळें ॥१॥
लोक-व्यवहार अर परमार्थ री पढाई महाराज पिताजी बोल्होबा कनै करी । बडै भाई सावजी
ब्यापार-धंधै करनी ध्यान देवणो नकार देवण रै कारण पिताजी श्रीतुकारम महाराज नै
ब्यापार-धंधो अर साहूकारी रो काम देखण सारू कैयो । हाट-बजार रै महाजनी आळै मकान में
पिताजी रै हाथ हेठै काम करतां-करतां धंधै रा पाठ सीखता रैया । ऊमर रो तेरवैं बरस
में महाराज रै खांधै माथै गिरस्ती रो भार आय पड़्यो । महाराज बेगा ई स्वतंत्र रूप
सूं काम-धंधो ( ब्यापार ) देखण लागग्या । साहूकारी में, ब्यापार-धंधै में महाराज री
आछी पैठ जमगी । लोगां कनै सूं शाबासी मिलण लागगी । सगळा जणा तारीफ करण लागग्या ।
तीनूं भाइयां रा ब्यांव हुयग्या । महाराज री पैलड़ी पत्नी दमै रै कारण सदा ई बैमार
रैवण रै कारण महाराज रो दूसरा ब्यांव पूना रै नामी साहूकार अप्पाजी गुळवे री कन्या
सौ. जिजाबाई उर्फ आवली रै सागै हुयो । एक धनवान घराणै रो दूसरे धनवान घराणै सूं
संबंध हो । ओ लौकिक धन-ऐश्वर्य परा-कोटी तांई पूगग्यो हो । घर में धन-धान्य बेशुमार
हो । प्रेमी माता-पिता, सज्जन बंधु, निरोगो शरीर - किणी ई बात रो कोई टोटो को हो नी
।
माता पिता बंधु सज्जन । घरीं उदंड
धन धान्य ।
शरिरी आरोग्य लोकांत मान ।
एकही उणे असेना ॥ १ ॥
( महिपतिबाबा चरित्र )
ऐ सुख, शांति अर ऐश्वर्य रा दिन कद
बीतग्या, कियां बीतग्या ओ थोड़ो-घणो ई समझ में को आयो नी । इण रै पछै ’सुख रै बाद आवै
दुख’ इण भविष्य री चाल सरू हुयी | |