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बाल गोपाल |
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चित्र : क्षितिज थिगळे
अनुवाद - श्रीराम शिकारखाने
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प्रेम की कहानी बात सुनिए जगजेठी । कहता हूँ बात स्मरण आयी ॥
एक हिरन अपने दो शावकोंके साथ । सुख आनंदसे थे चरते वन में॥ |
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एक पारधी वहाँ अचानक आया। साथ में दो श्वान वहाँ लाया॥ |
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एक ओर जाल बिछाया । दुसरी ओर श्वान को थमाया॥
लगाई आग एक ओर। स्वंय रहा खडा एक ओर ॥ |
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घेरे गये मृग चारो ओर से। पुकारते तेरा नाम मांगती मिन्नते ॥ |
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राम कृष्ण हरी गोविंद केशव । ईश्वरों का ईश्वर हमें उभार अब॥
ऐस संकट में हमारी रक्षा कौन करे। बाप तू जगदिश सिवा तेरे ॥ |
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सुनकर वचन उनके तुमने । पिघला अंतर तुम्हारा लथपथ कृपासे॥
उस अवसर पर पर्जन्य को करी आज्ञा। झटसे आग को डाला बुझा ॥ |
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खरगोश एक वहाँ उठा भगाया। उसके पीछे दौडे श्वान दोनो॥ |
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हिरन चौंककर तत्पर निकले। रक्षा गोविंद ने की समझ चुके वे ॥
कृपालु दयालू है तू ऐसा । सुहृद जीवलग अपने भक्ताप्त का ॥
बहु प्रिय ऐसी तुम्हारी ख्याति । तुका कहे रखूमाई के पती ॥
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