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॥पद्यानुवाद ॥
तेरा रूपनिहारू सुंदर, ईंट खडे, कटि हाथ धरे ॥
तुलसीमाल गले वर राजै, पीतांबर परिधान करे ॥
वही रूप भाए प्रतिपल, झलमल मकराकृति कुंडल कर्णं खरे ॥ |
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कंठ विराजित कौस्तुभमणि, प्रभु अनुपम छवि निखरे ॥
तुका कहत पाऊँ पूरन सुख, श्रीमुख निरखूँ चाव भरे ॥
॥पद्यानुवाद ॥
रूप- नाम है माया, केवल कहने भर के बोल ॥
भावै माया तुच्छ, मनुज ! या बाँट भक्ति अनमोल ॥
खींचे सीमा धरा न खंडै, बुध्दिवंत मन रहै अडोल ॥
गर्भजात अर्भक ऍंक खेलै, पारखि चित नहिं चिंता डोल ॥
तुका कहे हरिहर विभाग क्षर, भगति अरुपहिं मोल ॥
॥पद्यानुवाद ॥
मूरति रखुमापति समधी से, जुडे सदा रहैं नैन हमारे ॥ह
मीठा तेरा रुप, नाम मीठा है, दे सबकाल प्रेम हे प्यारे ॥
मात विठा ! यह वर दे मुझको, रहूँ तुझे अविरत उर धारे ॥
तुका कहे नहिं चाहौं दूसर कछु, चरणनि सब सुख आहिं तिहारे ॥
॥पद्यानुवाद ॥
निरखि सगुण मधुरूपरुचिर तव, लोचन प्रफुल्लित हैं मेरे ॥
रहो खडे प्रत्यक्ष निचल अब, पांडुरंग नैननि राखूँ रे ॥
ललचा मन यों मधुर रूपपर, जीव न त्यागै, दे फेरे ॥
तुका कहे लाड़ला तुम्हारा, मायबाप पुरवहु हठ रे ॥ |
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