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१
मैं भुली घरजानी बाट । गोरस बेचन आयें हाट ॥१॥
कान्हा रे मनमोहन लाल । सब ही बिसरूं देखें गोपाल ॥ध्रु.॥
काहां पग डारूं देख आनेरा । देखें तों सब वोहिन घेरा ॥२॥
हुं तों थकित भैर तुका । भागा रे सब मनका धोका ॥३॥
२
हरिबिन रहियां न जाये जिहिरा । कबकी थाडी देखें राहा ॥१॥
क्या मेरे लाल कवन चुकी भई । क्या मोहिपासिती बेर लगाई ॥ध्रु.॥
कोई सखी हरी जावे बुलावन । बार हि डारूं उसपर तन ॥२॥
तुका प्रभु कब देखें पाऊं । पासीं आऊं फेर न जाऊं ॥३॥
३
भलो नंदाजीको डिकरो । लाज राखीलीन हमारो ॥१॥
आगळ आवो देवजी कान्हा । मैं घरछोडी आहे ह्मांना ॥ध्रु.॥
उन्हसुं कळना वेतो भला । खसम अहंकार दादुला ॥२॥
तुका प्रभु परवली हरी ।छपी आहे हुं जगाथी न्यारी ॥३॥
मुंढा - अभंग ३
४
संबाल यारा उपर तलें दोन्हो मारकी चोट ।
नजर करे सो ही राखे पश्वा जावे लुट ॥१॥
प्यार खुदाई रे बाबा जिकिर खुदाई ॥ध्रु.॥
उडे कुदे ढुंग नचावे आगल भुलन प्यार ।
लडबड खडबड कांहेकां खचलावत भार ॥२॥
कहे तुका चलो एका हम जिन्होंके सात ।
मिलावे तो उसे देना तो ही चढावे हात ॥३॥
५
सब संबाल भ्याने लौंढे खडा केऊं गुंग ।
मदिरथी मता हुवा भुलि पाडी भंग ॥१॥
आपसकुं संबाल आपसकुं संबाल । मुंढे खुब राख ताल ।
मुथिवोहि बोला नहीं तो करूँगा हाल ॥ध्रु.॥
आवलका तो पीछें नहीं मुदल बिसर जाय ।
फिरते नहीं लाज रंडी गधे गोते खाय ॥२॥
जिन्हो खातिर इतना होता सो नहीं तुझे बेफाम ।
उचा जोरो लिया तुंबा तुंबा बुरा काम ॥३॥
निकल जावे चिकल जोरो मुंढे दिलदारी ।
जबानीकी छोड दे बात फिर एक तारी ॥४॥
कहे तुका फिसल रुका मेरेको दान देख ।
पकड धका गांडगुडघी मार चलाऊं आलेख ॥५॥
६
आवल नाम आल्ला बडा लेते भुल न जाये ।
इलाम त्याकालजमुपरताही तुंब बजाये ॥१॥
आल्ला एक तुं नबी एक तुं ॥ध्रु.॥
काटतें सिर पावों हात नहीं जीव उराये ।
आगले देखे पिछले बुझे । आपें हजुर आयें ॥२॥
सब सबरी नचाव म्याने । खडा आपनी सात ।
हात पावों रखते जबाब । नहीं आगली बात ॥३॥
सुनो भाई बजार नहीं । सब हि निरचे लाव ।
नन्हा बडा नहीं कोये एक ठोर मिलाव ॥४॥
एक तार नहीं प्यार । जीवतनकी आस ।
कहे तुका सो हि मुंढा । राखलिये पायेनपास ॥५॥
डोई फोडा - अभंग १
७
तम भज्याय ते बुरा जिकीर ते करे ।
सीर काटे ऊर कुटे ताहां सब डरे ॥१॥
ताहां एक तु ही ताहां एक तु ही ।
ताहां एक तु ही रे बाबा हमें तुह्में नहीं ॥ध्रु.॥
दिदार देखो भुले नहीं किशे पछाने कोये ।
सचा नहीं पकडुं सके झुटा झुटे रोये ॥२॥
किसे कहे मेरा किन्हे सात लिया भास ।
नहीं मेलो मिले जीवना झुटा किया नास ॥३॥
सुनो भाई कैसा तो ही । होय तैसा होय ।
बाट खाना आल्ला कहना एकबारां तो ही ॥४॥
भला लिया भेक मुंढे । आपना नफा देख ।
कहे तुका सो ही संका । हाक आल्ला एक ॥५॥
मलंग - अभंग १
८
नजर करे सो ही जिंके बाबा दुरथी तमासा देख ।
लकडी फांसा लेकर बैठा आगले ठकण भेख ॥१॥
काहे भुला एक देखत आंखो मार तडांगो बाजार ॥ध्रु.॥
दमरी चमरी जो नर भुला। सोत आघो हि लत खाये ॥२॥
नहि बुलावत किसे बाबा आप हि मत जाये ।
कहे तुका उस असाके संग फिरफिर गोदे खाये ॥३॥
दरवेस -अभंग १
९
अल्ला करे सो होय बाबा करतारका सिरताज ।
गाउ बछरे तिस चलावे यारी बाघो न सात ॥१॥
ख्याल मेरा साहेबका। बाबा हुवा करतार ।
व्हांटें आघे चढे पीठ । आपे हुवा असुवार ॥२॥
जिकिर करो अल्लाकी बाबा सबल्यां अंदर भेस ।
कहे तुका जो नर बुझे सो हि भया दरवेस ॥३॥
वैद्यगोळी - अभंग १
१०
अल्ला देवे अल्ला दिलावे अल्ला दारु अल्ला खलावे।
अल्ला बगर नही कोये अल्ला करे सो हि होये ॥१॥
मर्द होये वो खडा फीर नामर्दकुं नहीं धीर ।
आपने दिलकुं करना खुसी तीन दामकी क्या खुमासी ॥ध्रु.॥
सब रसोंका किया मार । भजनगोली एक हि सार ।
इमान तो सब ही सखा । थोडी तो भी लेकर ज्या ॥२॥
जिन्हो पास नीत सोये । वो हि बसकर तिरोवे ।
सांतो पांचो मार चलावे । उतार सो पीछे खावे ॥३॥
सब ज्वानी निकल जावे। पीछे गधडा मटी खावे ।
गांवढाळ सो क्या लेवे । हगवनि भरी नहि धोवे ॥४॥
मेरी दारु जिन्हें खाया । दिदार दरगां सो हि पाया ।
तल्हे मुंढी घाल जावे । बिगारी सोवे क्या लेवे ॥५॥
बजारका बुझे भाव। वो हि पुसता आवे ठाव ।
फुकट बाटु कहे तुका । लेवे सोहि लें हिसखा ॥६॥
११
क्या गाऊं कोई सुननवाला । देखें तों सब जग ही भुला ॥१॥
खेलों आपणे राम इसातें । जैसी वैसी करहों मात ॥ध्रु.॥
काहांसे ल्यावों माधर वाणी । रीझे ऐसी लोक बिराणी ॥२॥
गिरिधर लाल तो भावहि भुका । राग कला नहीं जानत तुका ॥३॥
१२
छोडे धन मंदिर बन बसाया । मांगत टूका घरघर खाया ॥१॥
तीनसों हम करवों सलाम । ज्या मुखें बैठा राजाराम ॥ध्रु.॥
तुलसीमाला बभूत चऱ्हावे । हरजीके गुण निर्मल गावे ॥२॥
कहे तुका जो साईं हमारा । हिरनकश्यप उन्हें मारहि डारा ॥३॥
१३
मंत्रयंत्र नहीं मानत साखी । प्रेमभाव नहीं अंतर राखी ॥१॥
राम कहे त्याके पगहूं लागूं । देखत कपट अमिमान दुर भागूं ॥ध्रु.॥
अधिक याती कुलहीन नहीं ज्यानु । ज्याणे नारायन सो प्राणी मानूं ॥२॥
कहे तुका जीव तन डारू वारी । राम उपासिंहु बलियारी ॥३॥
१४
हरिसुं मिल दे एक हि बेर । पाछे तूं फिर नावे घर ॥१॥
मात सुनो दुति आवे मनावन । जाया करति भर जोबन ॥ध्रु.॥
हरिसुख मोहि कहिया न जाये । तव तूं बुझे आगोपाये ॥२॥
देखहि भाव कछु पकरि हात । मिलाइ तुका प्रभुसात ॥३॥
१५
क्या कहुं नहीं बुझत लोका । लिजावे जम मारत धका ॥१॥
क्या जीवनेकी पकडी आस । हातों लिया नहीं तेरा घांस ॥ध्रु.॥
किसे दिवाने कहता मेरा । कछु जावे तन तूं सब ल्या न्यारा ॥२॥
कहे तुका तूं भया दिवाना । आपना विचार कर ले जाना ॥३॥
१६
कब मरूं पाऊं चरन तुम्हारे । ठाकुर मेरे जीवन प्यारे ॥१॥
जग रडे ज्याकुं सो मोहि मीठा । मीठा दर आनंदमाहि पैठा ॥ध्रु.॥
भला पाऊं जनम ईण्हे बेर । बस मायाके असंग फेर ॥२॥
कहे तुका धन मानहि दारा । वोहिलिये गुंडलीयें पसारा ॥३॥
१७
दासों पाछें दौरे राम । सोवे खडा आपें मुकाम ॥१॥
प्रेमरसडी बांधी गळे । खैंच चले उधर ॥ध्रु.॥
आपणे जनसु भुल न देवे । कर हि धर आघें बाट बसावे ॥२॥
तुका प्रभु दीनदयाला। वारि रे तुज पर हुं गोपाला ॥३॥
१८
ऐसा कर घर आवे राम । और धंदा सब छोर हि काम ॥ ध्रु॥
इतन गोते काहे खाता । जब तूं आपणा भूल न होता ॥१॥
अंतरजामी जानत साचा । मनका एक उपर बाचा ॥२॥
तुकाप्रभु देसबिदेस । भरिया खाली नहीं लेस ॥३॥
१९
मेरे रामको नाम जो लेवे बारोंबार । त्याके पाऊं मेरे तनकी पैजार
॥ध्रु.॥
हांसत खेलत चालत बाट । खाणा खाते सोते खाट ॥१॥
जातनसुं मुजे कछु नहीं प्यार । असते की नही हेंदु धेड चंभार ॥२॥
ज्याका चित लगा मेरे रामको नाव । कहे तुका मेरा चित लगा त्याके पाव
॥३॥
२०
आपे तरे त्याकी कोण बराई । औरनकुं भलो नाम घराई ॥ध्रु.॥
काहे भूमि इतना भार राखे । दुभत धेनु नहीं दुध चाखे ॥१॥
बरसतें मेघ फलतेंहें बिरखा । कोन काम अपनी उन्होति रखा ॥२॥
काहे चंदा सुरज खावे फेरा । खिन एक बैठन पावत घेरा ॥३॥
काहे परिस कंचन करे धातु । नहीं मोल तुटत पावत घातु ॥४॥
कहे तुका उपकार हि काज । सब कररहिया रघुराज ॥५॥
२१
जग चले उस घाट कोन जाय । नहीं समजत फिरफिर गोदे खाय ॥ध्रु.॥
नहीं एकदो सकल संसार । जो बुझे सो आगला स्वार ॥१॥
उपर श्वार बैठे कृष्णांपीठ । नहीं बाचे कोइ जावे लूठ ॥२॥
देख हि डर फेर बैठा तुका । जोवत मारग राम हि एका ॥३॥
२२
भले रे भाई जिन्हें किया चीज । आछा नहीं मिलत बीज ॥ध्रु.॥
फीरतफीरत पाया सारा । मीटत लोले धन किनारा ॥१॥
तीरथ बरत फिर पाया जोग । नहीं तलमल तुटति भवरोग ॥२॥
कहे तुका मैं ताको दासा । नहीं सिरभार चलावे पासा ॥३॥
२३
लाल कमलि वोढे पेनाये । मोसु हरिथें कैसें बनाये ॥ध्रु.॥
कहे सखि तुम्हें करति सोर । हिरदा हरिका कठिन कठोर ॥१॥
नहीं क्रिया सरम कछु लाज । और सुनाउं बहुत हे भाज ॥२॥
और नामरूप नहीं गोवलिया । तुकाप्रभु माखन खाया ॥३॥
२४
राम कहो जीवना फल सो ही । हरिभजनसुं विलंब न पाई ॥ध्रु.॥
कवनका मंदर कवनकी झोपरी । एकारामबिन सब हि फुकरी ॥१॥
कवनकी काया कवनकी माया । एकरामबिन सब हि जाया ॥२॥
कहे तुका सब हि चेलण्हार । एकारामविन नहीं वासार ॥३॥
२५
काहे भुला धनसंपत्तीघोर । रामराम सुन गाउ हो बाप रे ॥ध्रु.॥
राजे लोक सब कहे तूं आपना । जब काल नहीं पाया ठाना ॥१॥
माया मिथ्या मनका सब धंदा । तजो अभिमान भजो गोविंदा ॥२॥
राना रंग डोंगरकी राई । कहे तुका करे इलाहि ॥३॥
२६
काहे रोवे आगले मरना । गंव्हार तूं भुला आपना ॥ध्रु.॥
केते मालुम नहीं पडे । नन्हे बडे गये सो ॥१॥
बाप भाई लेखा नहीं । पाछें तूं हि चलनार ॥२॥
काले बाल सिपत भये । खबर पकडो तुका कहे ॥३॥
२७
क्या मेरे राम कवन सुख सारा । कहकर दे पुछूं दास तुह्मारा ॥ध्रु.॥
तनजोबनकी कोन बराई । ब्याधपीडादि स काटहि खाई ॥१॥
कीर्त बधाऊं तों नाम न मेरा । काहे झुटा पछतऊं घेरा ॥२॥
कहे तुका नहीं समज्यात मात । तुह्मारे शरन हे जोडहि हात ॥३॥
२८
देखत आखों झुटा कोरा । तो काहे छोरा घरंबार ॥ध्रु.॥
मनसुं किया चाहिये पाख । उपर खाक पसारा ॥१॥
कामक्रोधसो संसार । वो सिरभार चलावे ॥२॥
कहे तुका वो संन्यास। छोडे आस तनकी हि ॥३॥
२९
रामभजन सब सार मिठाई । हरि संताप जनमदुख राई ॥ध्रु.॥
दुधभात घृत सकरपारे । हरते भुक नहि अंततारे ॥१॥
खावते जुग सब चलिजावे । खटमिठा फिर पचतावे ॥२॥
कहे तुका रामरस जो पावे । बहुरि फेरा वो कबहु न खावे ॥३॥
३०
बारंबार काहे मरत अभागी । बहुरि मरन संक्या तोरेभागी ॥ध्रु.॥
ये हि तन करते क्या ना होय । भजन भगति करे वैकुंठे जाय ॥१॥
रामनाम मोल नहीं वेचे कबरि । वो हि सब माया छुरावत झगरी ॥२॥
कहे तुका मनसुं मिल राखो । रामरस जिव्हा नित्य चाखो ॥३॥
३१
हम दास तीन्हके सुनाहो लोकां । रावणमार विभीषण दिई लंका ॥ध्रु.॥
गोबरधन नखपर गोकुल राखा । बर्सन लागा जब मेंहुं फत्तरका ॥१॥
वैकुंठनायक काल कौंसासुरका । दैत डुबाय सब मंगाय गोपिका ॥२॥
स्तंभ फोड पेट चिरीया कसेपका । प्रल्हाद के लियें कहे भाई तुकयाका
॥३॥
॥ साख्या ॥ ३० ॥
३२
तुका बस्तर बिचारा क्यों करे रे । अंतर भगवा न होय।
भीतर मैला केंव मिटे रे । मरे उपर धोय ॥१॥
३३
रामराम कहे रे मन । औरसुं नहीं काज ।
बहुत उतारे पार । आघे राख तुकाकी लाज ॥१॥
३४
लोभी कें चित धन बैठे । कामीन चित्त काम
।
माताके चित पुत बैठें । तुकाके मन राम ॥१॥
३५
तुका पंखिबहिरन मानुं । बोई जनावर बाग ।
असंतनकुं संत न मानूं । जे वर्मकुं दाग ॥१॥
३६
तुका राम बहुत मिठा रे । भर राखूं शरीर ।
तनकी करूं नावरि । उतारूं पैल तीर ॥१॥
३७
संतन पन्हयां लें खडा । राहूं ठाकुरद्वार ।
चलत पाछेंहुं फिरों । रज उडत लेऊं सीर ॥१॥
३८
तुकाप्रभु बडो न मनूं न मानूं बडो । जिसपास बहु दाम ।
बलिहारि उस मुखकी । जीसेती निकसे राम ॥१॥
३९
राम कहे सो मुख भलारे । खाये खीर खांड ।
हरिबिन मुखमो धूल परी रे । क्या जनि उस रांड ॥१॥
४०
राम कहे सो मुख भला रे । बिन रामसें बीख ।
आव न जानूं रमते बेरों । जब काल लगावे सीख ॥१॥
४१
कहे तुका में सवदा बेचूं । लेवेके तन हार ।
मिठा साधुसंतजन रे । मुरुखके सिर मार ॥१॥
४२
तुका दास तिनका रे । रामभजन निरास ।
क्या बिचारे पंडित करो रे । हात पसारे आस ॥१॥
४३
तुका प्रीत रामसुं । तैसी मिठी राख ।
पतंग जाय दीप परे रे । करे तनकी खाक ॥१॥
४४
कहे तुका जग भुला रे । कहया न मानत कोय ।
हात परे जब कालके । मारत फोरत डोय ॥१॥
४५
तुका सुरा नहि सबदका रे । जब कमाइ न होये ।
चोट साहे घनकि रे । हिरा नीबरे तोये ॥१॥
४६
तुका सुरा बहुत कहावे । लडत विरला कोये ।
एक पावे उंच पदवी । एक खौंसां जोये ॥१॥
४७
तुका माऱ्या पेटका । और न जाने कोये ।
जपता कछु रामनाम । हरिभगतनकी सोये ॥१॥
४८
काफर सोही आपण बुझे । आला दुनियां भर ।
कहे तुका तुम्हें सुनो रे भाई । हिरिदा जिन्होका कठोर ॥१॥
४९
भीस्त न पावे मालथी । पढीया लोक रिझाये ।
निचा जथें कमतरिण । सो ही सो फल खाये ॥१॥
५०
फल पाया तो खुस भया । किन्होसुं न करे बाद ।
बान न देखे मिरगा रे । चित्त मिलाया नाद ॥१॥
५१
तुका दास रामका । मनमे एक हि भाव ।
तो न पालटू आव । ये हि तन जाव ॥१॥
५२
तुका रामसुं चित बांध राखूं । तैसा आपनी हात ।
धेनु बछरा छोर जावे । प्रेम न छुटे सात ॥१॥
५३
चितसुं चित जब मिले । तब तनु थंडा होये ।
तुका मिलनां जिन्होसुं । ऐसा विरला कोये ॥१॥
५४
चित मिले तो सब मिले । नहीं तो फुकट संग ।
पानी पाथर येक ही ठोर । कोरनभिगे अंग ॥१॥
५५
तुका संगत तीन्हसें कहिये । जिनथें सुख दुनाये ।
दुर्जन तेरा मू काला । थीतो प्रेम घटाये ॥१॥
५६
तुका मिलना तो भला । मनसुं मन मिल जाय ।
उपर उपर माटि घसनी । उनकि कोन बराई ॥१॥
५७
तुका कुटुंब छोरे रे । लरके जोरों सिर गुंदाय ।
जबथे इच्छा नहीं मुई । तब तूं किया काय ॥१॥
५८
तुका इच्छा मीटइ तो । काहा करे चट खाक ।
मथीया गोला डारदिया तो । नहीं मिले फेरन ताक ॥१॥
५९
ब्रीद मेरे साइंयाके । तुका चलावे पास ।
सुरा सो हि लरे हमसें । छोरे तनकी आस ॥१॥
६०
कहे तुका भला भया । हुं हुवा संतनका दास ।
क्या जानूं केते मरता । जो न मिटती मनकी आस ॥१॥
६१
तुका और मिठाई क्या करूं रे । पाले विकारपिंड ।
राम कहावे सो भली रुखी । माखन खांडखीर ॥१॥
६२
काहे लकडा घांस कटावे । खोद हि जुमीन मठ बनावे ॥१॥
देवलवासी तरवरछाया । घरघर माई खपरिबसमाया॥ध्रु.॥
कां छांडियें भार फेरे सीर भागें । मायाको दुःख मिटलिये अंगें॥२॥
कहे तुका तुम सुनो हो सिध्दा । रामबिना और झुटा कछु धंदा ॥३॥
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