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२. राजकीय, धार्मिक, सामाजिक स्थिति

 
 
 
 

तुकारामजी की
हिन्दी रचनाँए

 
 

चरित्र

 
 

अनुवाद

 
 

गांधीज

 
 

बालगोपाल

 
 

प्रतिक्रिया

 
 

मुखपृष्ट

          दख्खिन में उस समय मुगलों का शासन था | गोवा में पोर्तुगीज थे । विजापूर की आदिलशाही, अहमदनगर की निजामशाही, गोवलकोंडा की कुतुबशाही, यह तीनों सल्तनतें आपसी लडाई में व्यस्त थीं | गाँव जलाकर खाक में मिलाए जाते थे, लूट लिए जाते थे। राजा-महाराजा भोग-विलासों में डूबे थे | उनके अत्याचारोंसे प्रजा पीडित थी। क्षत्रिय वैश्यों को त्रस्त करते थे | ब्राह्मणों ने अपना आचार त्यागा था | जबरदस्ती से धर्मांतर करवाया जाता था | तुकारामजी ने एक स्थान पर कहा है |
         द्विज बने चोर, त्यागकर आचार | राजा प्रजा पर तो क्षत्रिय वैश्यों पर करे अत्याचार | वैश्य तथा शूद्रों की हालत के बारे में क्या बताएँ ? धर्म का लोप हुआ था, अधर्म का बोलबाला था |
                      '' ऐसा अधर्म का बल | लुप्त हुआ धर्म सकल ||''
    लोग अधर्म को ही धर्म मानने लगे थे | संत-सज्जनों का सम्मान मिट चुका था |
                 '' संतों को न था सम्मान काफिर बना भगवान ||''
        समाज अनेकेश्वर वाद में उलझकर बँटा हुआ था | अज्ञान का अंधेरा फैला हुआ था | लोगों को इंतजार था सूरज की रोशनी का | ऐसी अव्यवस्था में देहू ग्राम में चित्-सूर्य का उदय हुआ |
 संतगृह मेले में, जगत का अंधेरा मेटनहार | उदयाचल पर एक छवि, तुकारामरूपी रवि |
             महान भक्त बोल्होबा तथा उनकी पत्नी माता कनकाई के घर शके 1530  में तुकारामजी का जन्म हुआ । अमीरी के कारण उनका बचपन बडे लाड-प्यार में बीता | पंतोजी द्वारा उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। पंतोजी बच्चों का हाथ पकडकर पढना-लिखना सिखाते थे|
                              लिखित करने बालक | पंतोजीने पकडी कलम |
               बच्चे कंकड जोडकर गिनती सीखते थे ; वर्णमाला लिखते थे ।
                        अक्षरस्तंभ के समय बालक ने रचे कंकड ||
             तुकारामजी को अपने पिता बोल्होबाजी से व्यावहारिक और पारमार्थिक ज्ञान प्राप्त हुआ | ज्येष्ठ बंधु सावजी ने साहुकारी और ब्यौपार, कारोबार करने से मना किया । अतः तुकारामजी को ही पिताजी का कारोबार संभालना पडा | पिताजी के साथ महाजनी का काम करते करते व्यवसाय का सूक्ष्मता से ज्ञान प्राप्त होने लगा | थोडे समय में ही तुकारामजी कारोबार में आत्मनिर्भर बने | ब्यापार, साहुकारी, महाजनी में उन्होंने अच्छी गति पाई | उन्हें लोगों से प्रशंसा प्राप्त होने लगी | तुकारामजी घर के वातावरण की पवित्रता, सात्त्विकता बाजार के घर में अर्थात अपने कारोबार में भी लाए | तीनों भाईयों की शादी हुई | तुकारामजी प्रथम पत्नी दमा (साँस की बीमारी) से पीडित थी | अतः उनका दूसरा विवाह पुणे के प्रसिध्द साहुकार अप्पाजी गुळवे की कन्या जिजाबाई (आवली) के साथ हुआ | एक अमीर खानदान का दूसरे अमीर खानदान से रिश्ता जुड गया | ऐहिक ऐश्वर्य अपनी चरमसीमा पर था | धन-धान्य से घर भरापूरा था, समृध्द था | माता-पिता की ममता, भाईयों की सज्जनता, शरीर का स्वास्थ्य, सबकुछ था, कहीं कोई कमी न थी |
                माता, पिता बंधु सज्जन | घर में अनाज की राशियाँ थीं जमी |

              शारीरिक स्वास्थ्य, लोगों में सन्मान | एक की भी न थी कमी |
                                                                                          (महीपती बाबा चरित्र)
     सुख, समृध्दि, संतोष, ऐश्वर्य के दिन कैसे बीते, पता ही न चला | विधि के चक्र नियमानुसार सुख के बाद दुःख आ गया |

 
 

३. माता-पिता से वियोग